Posts

Showing posts from February, 2022

शबे मेराज और नवाफिल

* शबे मेराज * بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ हज़रत नईमुद्दीन मुरादाबादी तफ़्सीरे खनाइनुल इरफान में फ़रमाते है:- 27 रजब को मेराज हुई।  मक्का से हुज़ूर ﷺ का बैतूल मुक़द्दस तक रात के छोटे हिस्से में तशरीफ़ ले जाना नसरे क़ुरआनी से साबित है। इस का इन्कार करने वाला काफ़िर है।       और आसमानों की सैर और मनाज़िले क़ुर्ब में पहुंचना अहादीसे सहीहा मोतमदा मशहुरा से साबित है, जो हद्दे तवातुर के क़रीब पहुंच गई है इसका इन्कार करने वाला गुमराह है।      उरूज या एराज यानी हुज़ूर ﷺ का सर की आँखों से दीदारे इलाही करने और फौक़ल अर्श (अर्श से ऊपर) जाने का इन्कार करने वाला खाती यानी खताकार है। *📓फ़ैज़ाने मेराज 62* *♦️ शबे मेराज के नवाफिल * रजब की सत्ताईसवीं शब को बारह रकअत नमाज़ तीन सलाम से पढ़े पहली चार रकअत में बाद सूरह फातेहा के सूरह कदर तीन तीन मर्तबा हर रकअत में बाद सलाम के सत्तर मर्तबा बैठकर  *لاَاِلٰهَ اِلاَّاللّٰهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ الْمُبِیْنُ*  पढ़े दूसरी चार रकअत में बाद सूरह फातेहा के सूरह नसर तीन तीन मर्तबा हर रकअत में बाद सलाम के बैठ

*शब-ए-जुमा का दुरूद*

*🥀بِسْــــــــــــــــــمِ ﷲِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ* *🥀اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ* *✨शब-ए-जुमा का दुरूद* बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख़्स हर शबे जुमा (जुमा और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढ़ेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और क़ब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक कि वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथों से उतार रहे हैं *⭐بِسْــــــــــــــــــمِ ﷲِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ* *اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِنَا وَمَوْلٰنَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاہِ ُوَعَلٰی اٰلِهٖ وَصَحْبِهٖ وَسَلّـِم* *✨सारे गुनाह मुआफ़* हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स जुमा के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार *اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ* पढ़े उस के गुनाह बख़्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हों। 📗(अलमुजमुल अवसत लित्तिब्रनि, 5/392, हदी

सूरह फ़लक़ और सूरए नास के फ़जाइल (2)

 सूरह फ़लक़ और सूरए नास के फ़जाइल  पार्ट 02 بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ (4) जब रसूलुल्लाह ﷺ आराम फ़रमाने के लिये बिस्तर पर तशरीफ़ लाते तो दोनों हाथों को जोड़ कर सूरए इख्लास ,फ़लक़ और नास पढ़ कर दम करते और बदने अक्दस के जिस हिस्से तक हाथ पहुंचते वहां हाथ फैरते मगर हाथ फैरने की इब्तिदा सर और चेहरे से होती और जिस्मे अक्दस के अगले हिस्से से और इसी तरह तीन मर्तबा येह अमल करते थे। ✍🏻صَحِیحُ البُخارِیّ (5) सरकारे दो आलम ﷺ ने फ़रमाया قُلْ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌۚ और मुअव्वि-जतैन (सूरए फ़लक़ और सूरए नास) रोज़ाना तीन तीन मर्तबा सुब्ह व शाम पढ़ लिया करो यह तुम्हारे लिये हर चीज़ से किफ़ायत करेंगी।  ✍🏻اَلدُّرُالْمَنْشُوْر مدنی پنجسورہ ١٢٥ बाकी अगली पोस्ट में..ان شاء الله ●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•●

सूरह फ़लक़ और सूरए नास के फ़जाइल (1)

 सूरह फ़लक़ और सूरए नास के फ़जाइल (1) بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ  हज़रते सय्यिदुना जाबिर बिन अब्दुल्लाह फ़रमाते हैं कि सरकारे वाला तबार ,हम बे कसों के मददगार ,शफ़ीए रोजे शुमार ,दो आलम के मालिको मुख्तार ﷺ ने मुझ से फ़रमाया :- “ऐ जाबिर! पढ़ो।"  मैं ने अर्ज़ की :- “या रसूलल्लाह! ﷺ मेरे मां बाप आप पर कुरबान! क्या पढूं ?"  फ़रमाया :- قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ الْفَلَقِۙ और قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ النَّاسِۙ फिर मैं ने येह दोनों (सूरतें) पढ़ी तो फ़रमाया :- "इन दोनों को पढ़ा करो क्यूं कि तुम इन की मिस्ल हरगिज़ न पढ़ सकोगे।" (2) हज़रते सय्यिदुना उक्बा बिन आमिर से रिवायत है कि:-  "मैं एक सफ़र में रसूलुल्लाह ﷺ के साथ था तो आप ﷺ ने फ़रमाया :- “ऐ उक्बा! क्या मैं तुम्हें पढ़ी जाने वाली दो बेहतरीन सूरतें न सिखाऊं ?"  फिर आप ﷺ ने मुझे قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ الْفَلَقِۙ और قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ النَّاسِۙ सिखाई।"  (3) हज़रते सय्यिदुना उक्बा बिन आमिर से रिवायत है कि:- "मैं रसूलुल्लाह ﷺ के साथ जुहफ़

आलमे बरज़ख़ यानी मौत के बाद की दुनिया (1)

  आलमे बरज़ख़ यानी मौत के बाद की दुनिया पार्ट 01 بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ मरने के बा'द क़ियामत से पहले दुन्या व आख़िरत के दरमियान एक और आलम है। जिस को "आलमे बरज़ख़" कहते हैं। तमाम इन्सानों और जिन्नों को मरने के बाद इसी आलम में रहना होता है। इस आलमे बरज़ख़ में अपने अपने आ'माल के ए'तिबार से किसी को आराम मिलता है और किसी को तक्लीफ़।            📓बहारे शरीअत,हि.1,स.24  अक़ीदा :- 1 मरने के बाद भी रूह का तअल्लुक़ बदन के साथ बाक़ी रहता है। अगर्चे रूह बदन से जुदा हो गई है मगर बन्दे पर जो आलाम या सदमा गुज़रेगा रूह ज़रूर इस को महसूस करेगी और मुतास्सिर होगी। जिस तरह दुन्यावी ज़िन्दगी में बदन पर जो राहत और तक्लीफ़ पड़ती है इस की लज़्ज़त और तक्लीफ़ रूह को पहुंचती है। इसी तरह है आलमे बरज़ख़ में भी जो इन्आम या अज़ाब बदन पर वाक़ेअ होता है। उस की लज्जत और तक्लीफ़ रूह को पहुंचती है।  अक़ीदा :- 2 मरने के बाद मुसलमानों की रूह़े उन के दर्जात के ए'तिबार से मुख़्तलिफ़ मक़ामात में रहती है। बा'ज़ की क़ब्र