शबे मेराज और नवाफिल
* शबे मेराज * بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ हज़रत नईमुद्दीन मुरादाबादी तफ़्सीरे खनाइनुल इरफान में फ़रमाते है:- 27 रजब को मेराज हुई। मक्का से हुज़ूर ﷺ का बैतूल मुक़द्दस तक रात के छोटे हिस्से में तशरीफ़ ले जाना नसरे क़ुरआनी से साबित है। इस का इन्कार करने वाला काफ़िर है। और आसमानों की सैर और मनाज़िले क़ुर्ब में पहुंचना अहादीसे सहीहा मोतमदा मशहुरा से साबित है, जो हद्दे तवातुर के क़रीब पहुंच गई है इसका इन्कार करने वाला गुमराह है। उरूज या एराज यानी हुज़ूर ﷺ का सर की आँखों से दीदारे इलाही करने और फौक़ल अर्श (अर्श से ऊपर) जाने का इन्कार करने वाला खाती यानी खताकार है। *📓फ़ैज़ाने मेराज 62* *♦️ शबे मेराज के नवाफिल * रजब की सत्ताईसवीं शब को बारह रकअत नमाज़ तीन सलाम से पढ़े पहली चार रकअत में बाद सूरह फातेहा के सूरह कदर तीन तीन मर्तबा हर रकअत में बाद सलाम के सत्तर मर्तबा बैठकर *لاَاِلٰهَ اِلاَّاللّٰهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ الْمُبِیْنُ* पढ़े दूसरी चार रकअत में बाद सूरह फातेहा के सूरह नसर तीन तीन मर्तबा हर रकअत में बाद सलाम के बैठ