आलमे बरज़ख़ यानी मौत के बाद की दुनिया (1)

 आलमे बरज़ख़ यानी मौत के बाद की दुनिया पार्ट 01

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

मरने के बा'द क़ियामत से पहले दुन्या व आख़िरत के दरमियान एक और आलम है। जिस को "आलमे बरज़ख़" कहते हैं। तमाम इन्सानों और जिन्नों को मरने के बाद इसी आलम में रहना होता है। इस आलमे बरज़ख़ में अपने अपने आ'माल के ए'तिबार से किसी को आराम मिलता है और किसी को तक्लीफ़। 

          📓बहारे शरीअत,हि.1,स.24 

  • अक़ीदा :- 1 मरने के बाद भी रूह का तअल्लुक़ बदन के साथ बाक़ी रहता है। अगर्चे रूह बदन से जुदा हो गई है मगर बन्दे पर जो आलाम या सदमा गुज़रेगा रूह ज़रूर इस को महसूस करेगी और मुतास्सिर होगी। जिस तरह दुन्यावी ज़िन्दगी में बदन पर जो राहत और तक्लीफ़ पड़ती है इस की लज़्ज़त और तक्लीफ़ रूह को पहुंचती है। इसी तरह है आलमे बरज़ख़ में भी जो इन्आम या अज़ाब बदन पर वाक़ेअ होता है। उस की लज्जत और तक्लीफ़ रूह को पहुंचती है। 
  • अक़ीदा :- 2 मरने के बाद मुसलमानों की रूह़े उन के दर्जात के ए'तिबार से मुख़्तलिफ़ मक़ामात में रहती है। बा'ज़ की क़ब्र पर ,बा'ज़ की ज़म ज़म शरीफ़ के कुंवें में, बा'ज की आस्मानो ज़मीन के दरमियान,बा'ज़ की आस्मानों में, बा'ज़ की अर्श के नीचे किन्दीलों में, बा'ज़ की आ'ला इल्लिय्यीन में मगर रूहें कहीं भी हो अपने जिस्मों से बदस्तूर उन को तअल्लुक रहता है जो कोई उन की क़ब्र पर आए उस को वोह देखते पहचानते और उस की बातों को सुनते हैं।

✍🏻बाकी अगली पोस्ट मे..ان شاء الله

📓जन्नती जे़वर 188

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