कुफ्रिया कलिमात 1

*कुफ्रिया कलिमात*

**   जिस तरह कुछ जुम्ले (बातें) कुफ्रिया होती हैं .... जिस से बंदा इस्लाम से निकल जाता है .... उसी तरह कुछ फेल (काम) भी कुफ्रिया होते हैं .... जिसका करने वाला भी इस्लाम से निकल जाएगा .....

**   जैसा कि बुत (मूर्ति) , चांद , सूरज को सज्दा करना .... कुरआन शरीफ की तौहीन करना ....  जुन्नार बांधना (जुन्नार यानी वो धागा जो ग़ैर मुस्लिम गले और बगल के दरम्यान डालते हैं) .... और वो धागा या जंजीर जो इसाई , यहूदी और मजूसी कमर में बांंधते है वो बांधना) ....  सर पर चुटिया रखना .... कश्का (माथे पर धार्मिक टीका, तिलक लगाना) ....

**   ऐसे काम करने वाला फूकहा के नजदीक काफिर है .... ऐसा शख्स तौबा करे .... फिर से कल्मा पढ़े .... अगर शादीशुदा था तो फिर से कल्मा पढ़े .....

**  कुफ्रिया बात पर हंसने से क्या हुक्म लगेगा ??.....

इस में दो सूरते है .....

*1: बे इख्तियार हंसना*
*2: रजा मंदी में हंसना*

**  अगर कुफ्रिया बात ऐसी थी के बे इख्तियार हंसी निकल गई (जिसे आम ज़बान में कहते है के हंसी रुक ना सकी) ....तो इस सूरत में कुफ्र का हुक्म नहीं लगेगा (यानी इस शख्स को काफिर नही कहा जायेगा)

**  लेकिन अगर वो हंसने वाला शख्स दिल में उस कुफ्र से इत्तिफाक रखता है यानी दिल में उस कुफ्र पर राजी है , दिल में उस कुफ्र को सही समझता है तो इस सूरत में उस हंसने वाले पर भी कुफ्र का हुक्म लगेगा ....

*(کفریہ کلمات کے بارے میں سوال جواب ، صفحہ 474)*

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