इस्तिग्फ़ार करने के फ़ज़ाइल

*इस्तिग्फ़ार करने के फ़ज़ाइल*
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
*(1) दिलों के जंग की सफाई*
साहिबे कुरआने मुबीन,महबूबे रब्बुल आ-लमीन,जनाबे सादिको   अमीन ﷺ का फ़रमाने दिल नशीन है :- *बेशक लौहे की तरह दिलों को भी जंग लग जाता है और इस की जिला (या'नी सफ़ाई) इस्तिफ़ार करना है।*
📓مَحْمَعُ الْزَّوَائِد ج ۱۰ص۳٤٦ حديث ١٧٠٧٠

*(2) परेशानियों और तंगियों से नजात*
महबूबे रब्बे जुल जलाल,साहिबे जूदो नवाल,शहन्शाहे खुश ख़िसाल,सुल्ताने शीरीं मकाल,पैकरे हुस्नो जमाल ﷺ का फ़रमाने दिल नशीन है :- *जिस ने इस्तिग्फ़ार को अपने ऊपर लाज़िम कर लिया अल्लाह उस की हर परेशानी दूर फ़रमाएगा और हर तंगी से उसे राहत अता फरमाएगा और उसे ऐसी जगह से रिज्क अता फरमाएगा जहां से उसे गुमान भी न होगा।*
📓سُنَن ابن ماجه ج٤ص٢٠٧ حديث ٣٨١٩

*(3) खुश करने वाला आ'माल नामा:-* नबिय्ये मुकर्रम,नूरे मुजस्सम,रसूले अकरम,शहन्शाहे बनी आदम ﷺ का फ़रमाने मुसर्रत निशान है :- *जो इस बात को पसन्द करता है कि उस का नामए आ'माल उसे खुश करे तो उसे चाहिये कि उस में इस्तिग्फ़ार का इज़ाफ़ा करे।*
📓مَحْمَعُ الزَّوَائِد ج۱۰ص٣٤٧ حديث ١٧٥٧٩

*(4) खुश खबरी!*
हज़रते सय्यदुना अब्दुल्लाह बिन बुस्र फरमाते हैं कि मैंने शहन्शाहे मदीना ﷺ को फ़रमाते हुए सुना कि *खुश ख़बरी है उस के लिये जो अपने नामए आ'माल में इस्तिग्फ़ार को कसरत से पाए।*
📓سُنَن ابن ماجه ج ٤ص٢٥٧ حديث ٣٨١٨

*(5) सय्यिदुल इस्तिग्फार पढ़ने वाले के लिये जन्नत की बिशारत*
ख़ातिमुल मुर-सलीन,रहमतुल्लिल आलमीन,जनाबे सादिको    अमीन ﷺ ने फ़रमाया कि येह *सय्यिदुल इस्तिग्फ़ार* है :-
*اَللّٰهُمَّ اَنْتَ رَبِِّيْ لَا اِلٰهَ اِلَّا اَنْتَ خَلَقْتَنِيْ وَاَنَا عَبْدُكَ وَاَنَا عَلٰى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ مَا اسْتَطَعْتُ اَعُوْذُ بِكَ مِنْ شَرِِّ مَا صَنَعْتُ اَبُوْءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَىَّ وَاَبُوْءُ بِذَنْبِيْ فَاغْفِرْ لِيْ فَاِنَّهُ لَا يَغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اَنْتَ*
  *तर्जमा :-* *“ऐ अल्लाह عزوجل!* तू मेरा रब है तेरे सिवा कोई मा'बूद नहीं तूने मुझे पैदा किया मैं तेरा बन्दा हूं और ब-कद्रे ताक़त तेरे अहदो पैमान पर क़ाइम हूं,मैं अपने किये के शर से तेरी पनाह मांगता हूं,तेरी ने'मत का जो मुझ पर है इकरार करता हूं और अपने गुनाहों का ए'तिराफ़ करता हूं मुझे बख़्श दे कि तेरे सिवा कोई गुनाह नहीं बख़्श सकता।"
مدنی پنجسورہ ١٤١
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